28-11-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने की युक्तियाँ”

आज भट्ठी का कौन-सा दिन है? आज है सम्पूर्ण समर्पण होने का दिन। बापदादा को ऐसा समझकर बुलाया है। सम्पूर्ण समर्पण होने के लिये सभी तैयार हो वा सम्पूर्ण हो चुके हो? जो सम्पूर्ण हो चुके हैं आज उन्हीं का समारोह है। यह सभी के सभी सम्पूर्ण समर्पण हुए हैं। सम्पूर्ण समर्पण जो हो जाता है उसकी दृष्टि क्या होती है? (शुद्ध दृष्टि, शुद्ध वृत्ति हो जाती है) लेकिन किस युक्ति से वह वृत्ति-दृष्टि शुद्ध हो जाती है? एक ही शब्द में यह कहेंगे कि दृष्टि और वृत्ति में रूहानियत आ जाती है। अर्थात् दृष्टि वृत्ति रुहानी हो जाती हैं। जिस्म को नहीं देखते हैं तो शुद्ध, पवित्र दृष्टि हो जाती है। जड़ चीज़ को आँखों से देखेंगे ही नहीं तो उस तरफ वृत्ति भी नहीं जायेगी। दृष्टि नहीं जायेगी तो वृत्ति भी नहीं जायेगी। दृष्टि देखती है तब वृत्ति भी जाती है। रूहानी दृष्टि अर्थात् अपने को और दूसरों को भी रूह देखना चाहिए। जिस्म तरफ देखते हुए भी नहीं देखना है, ऐसी प्रैक्टिस होनी चाहिए। जैसे कोई बहुत गूढ़ विचार में रहते है, कुछ भी करते है, चलते, खाते-पीते है लेकिन उनको मालूम नहीं पड़ता है कि कहाँ तक आ पहुँचा हूँ, क्या खाया है। इसी रीति से जिस्म को देखते हुए भी नहीं देखेंगे और अपने उस रूह को देखने में ही बिजी होंगे तो फिर ऐसी अवस्था हो जायेगी जो कोई भी आपसे पूछेंगे यह कैसी थी तो आपको मालूम नहीं पड़ेगा। ऐसी अवस्था होगी। लेकिन वह तब होगी जब जिस्मानी चीज़ को देखते हुए उस जिस्मानी लौकिक चीज़ को अलौकिक रूप में परिवर्तन करेंगे। अपने में परिवर्तन करने के लिए जो लौकिक चीज़ें देखते हो या लौकिक सम्बन्धियों को देखते हो उन सभी को परिवर्तन करना पड़ेगा। लौकिक में अलौकिकता की स्मृति रखेंगे। भल लौकिक सम्बन्धियों को देखते हो लेकिन यह समझो कि अब हमारी यह भी ब्रह्मा बाप के बच्चे पिछली बिरादरी है। ब्रह्मा वंश तो है ना। क्योंकि ब्रह्मा दी क्रियेटर है, तो भक्त, ज्ञानी व अज्ञानी हैं लेकिन बिरादरी तो वह भी हैं ना। तो लौकिक सम्बन्धी भी ब्रह्मावंशी हैं लेकिन वह नजदीक सम्बन्ध के हैं, वह दूर के हैं। इसी रीति कोई भी लौकिक चीज़ देखते हो, दफ्तर में काम करते हो, बिजनेस करते हो, खाना खाते हो, देखते हो, बोलते हो लेकिन एक-एक लौकिक बात में अलौकिकता हो। इसी शरीर के कार्य के लिए चल रहे हो तो साथ-साथ समझो इन शारीरिक पाँव द्वारा लौकिक कार्य तरफ जा रहा हूँ लेकिन बुद्धि द्वारा अपने अलौकिक देश, कल्याण के कार्य के लिए जा रहा हूँ। पाँव यहाँ चल रहे हैं लेकिन बुद्धि याद की यात्रा में। शरीर को भोजन दे रहे हैं लेकिन आत्मा को फिर याद का भोजन देते जाओ। यह याद भी आत्मा का भोजन है। जिस समय शरीर को भोजन देते हो ऐसे ही शरीर के साथ में आत्मा को भी शक्ति का, याद का बल देना है।

अपने को परिवर्तन में लाने के लिए क्या करना पड़ेगा? हरेक चीज़ को लौकिक से अलौकिकता में परिवर्तन करना है। जिससे लोगों को मालूम हो कि यह कोई विशेष अलौकिक आत्मा है। लौकिक में रहते हुए भी हम, लोगों से न्यारे हैं। अपने को आत्मिक रूप में न्यारा समझना है। कर्तव्य से न्यारा होना तो सहज है, उससे दुनिया को प्यारे नहीं लगेंगे, दुनिया को प्यारे तब लगेंगे जब शरीर से न्यारी आत्मा रूप में कार्य करेंगे। तो सिर्फ दुनिया की बातों से ही न्यारा नहीं बनना है, पहले तो अपने शरीर से न्यारा बनना है। जब शरीर से न्यारे होंगे तब प्यारे होंगे। अपने मन के प्रिय, प्रभु प्रिय और लोक प्रिय भी बनेंगे। अभी लोगों को क्यों नहीं प्रिय लगते हैं? क्योंकि अपने शरीर से न्यारे नहीं हुए हो। सिर्फ देह के सम्बन्धियों से न्यारे होने की कोशिश करते हो तो वह उल्हने देते। खुद को क्या चेन्ज किया है? पहले देह के भान से न्यारे नहीं हुए हो तब तक उल्हना मिलता है। पहले देह से न्यारे होंगे तो उल्हने नहीं मिलेंगे। और ही लोकप्रिय बन जायेंगे। कई अपने को देख बाहर की बात को देख लेते हैं और बातों को पहले चेन्ज कर लेते हैं, अपने को पीछे चेन्ज करते हैं। इसलिए प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रभाव डालने के लिए पहले अपने को परिवर्तन में लाओ। अपनी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति को, सम्पत्ति को, समय को परिवर्तन में लाओ तब दुनिया को प्रिय लगेंगे। क्योंकि जब सम्पूर्ण हो गये तो उसके बाद फिर क्या करना है? बोलना-चलना कैसे हो वह बता रहे हैं। जैसे अपकी यादगार शाखों में बताते हैं - सम्पूर्ण समर्पण किसने और किसको कराया और कितने में कराया? यादगार की याद आती है? (राजा जनक का मिसाल) उनको तो बच्चों ने कराया। लेकिन बाप ने कराया ऐसा भी यादगार है। बतलाते हैं ना कि वामन अर्थात् छोटा। सभी से छोटा रूप किसका है? आत्मा और परमात्मा का, तो बाप ने आकर माया बली, जो बलवान है उससे तीन पैर में सभी कुछ लिया अर्थात् सम्पूर्ण समर्पण बनाया। आप लोगों को भी सम्पूर्ण समर्पण करना है अर्थात् जो भी माया का बल है वह सभी कुछ त्यागना है। माया का बली नहीं बनना है लेकिन ईथरीय शक्ति में बलवान बनना है। तो जैसे वह तीन पैर दिखाते हैं। यह कौन सी तीन बातें सुनाई जाती हैं जिससे सम्पूर्ण समर्पण आ जाता है। मन्सा, वाचा और कर्मणा के लिए शिक्षा कौनसी है? अगर वह तीन बातें याद रखेंगे तो सम्पूर्ण समर्पण हो ही जायेंगे। वह तीन बातें कौनसी? एक तो देह सहित सभी सम्बन्धों का त्याग। मामेकमू याद करो। यह तो हो गया मन्सा। वाचा के लिए क्या शिक्षा मिलती है? हर समय जैसे मोती चुगते है, इस रीति मुख से रत्न ही निकले। एक दो को पत्थर नहीं लेकिन ज्ञान रत्नों का दान देना है। और कर्मणा के लिए यही याद रखो कि जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख सभी करेंगे। दूसरी बात कि जो करेंगे सो पायेंगे। यह दोनों बातें याद रहने से कर्मणा में बल मिलता है अर्थात् जो सभी के सम्पर्क में आते है उसमें बल मिलता है। समझा? मन्सा, वाचा, कर्मणा के लिए इन मुख्य बातों को याद रखे तो फिर सम्पूर्ण समर्पण जो हुए हो उसको अविनाशी बना सकेंगे। ऐसे नहीं कि यहाँ सम्पूर्ण समर्पण का नशा चढ़ा है वह बाद में कम हो जाये। अगर यह पक्का याद रखेंगे कि हम तो सम्पूर्ण समर्पण हो ही गये तो यह अविनाशी याद आपको अविनाशी बनाकर रखेगी। अगर आप कुछ डगमग हुए तो फिर समस्या डगमग करेगी। आपके डगमग होने को और समस्याओं को देखते हुए लोग भी उसका तमाशा देखेंगे। बापदादा तो देखते रहते हैं।

साथ किसके रहेंगे? साथी अंगुली छोड़ दे तो क्या करेंगे? सभी अपना साथ निभाये। बापदादा तो किस न किस रुप से साथ निभाने अर्थात् अंगुली पकड़ने की कोशिश करते रहते हैं। इतने तक जो बिल्कुल साँस निकलने तक, साँस निकलने वाला भी होता है तो भी जान भरते हैं। लेकिन कोई ऑक्सीजन लगाने ही न दे, नली को ही निकाल दे तो क्या करेंगे? अगर बापदादा का सहयोग चाहिए तो वास्तव में सहयोग कोई माँगने की चीज़ नहीं है। सहयोग, स्नेही को स्वत: ही प्राप्त होता है। आप बापदादा का स्नेही बनो तो सहयोग स्वत: ही प्राप्त होगा। माँगने की आवश्यकता नहीं। आधा कल्प माँगते रहे, भक्त रूप में। अभी बच्चा बनकर भी माँगते रहे तो बाकी फर्क क्या रहा भक्त और बच्चों में? लेकिन कारण क्या है कि अज्ञानी होकर सहयोग माँगते हो अधिकारी समझो तो फिर माँगने की आवश्यकता नहीं। बीती सो बीती। जो बीत चुका उसका चिन्तन न करके, बीती हुई बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सावधान। अगर बीती हुई बातों को सोचते रहेंगे तो यह भी एक समस्या हो जायेगी। समस्यायें तो बहुत आती है, यह भी एक नई समस्या खडी कर देंगे। बीती को परिवर्तन में लाने, बल भरने के लिए उस रूप से सोचो। अगर यह सोचेंगे कि यह क्यों, कैसे हुआ, अब कैसे होगा, जम्प दे सकूँगा या नहीं। क्वेश्चन नहीं करो। क्वेश्चन मार्क के बदली फुलस्टॉप, बिन्दी लगाओ। बिन्दी लगाना सहज होता है। क्वेश्चन - मार्क तो कोई लिख सके वा नहीं। लेकिन यहाँ क्वेश्चन लगाना सभी को आता है। बिन्दी लगाते जाओ तो बिन्दी रूप में स्थित हो सकेंगे। म्यूज़ियम या प्रदर्शनी में आप लोग समझाने के बाद फिर क्या करते हो? म्यूज़ियम व प्रदर्शनी के पश्चात् क्या करना है वह पर्चा सभी को देते हो। तो बापदादा भी आज पूछते है कि आप भट्ठी के पश्चात् क्या करेंगे? यज्ञ के कार्य को कैसे आगे बढ़ायेंगे? अपनी उन्नति का साधन क्या करेंगे? दैवी गुण धारण करना, स्नेही बनना - यह तो करना ही है लेकिन प्रैक्टिकल रूप से क्या देंगे? जैसे आप लोगों ने सुनाया भी कि अपने, बाप-दादा के, परिवार के स्नेही-सहयोगी बनेंगे। लेकिन वह भी किन- किन बातों में बनना है। मन्सा- वाचा-कर्मणा के साथ-साथ तन-मन-धन तीनों रूप से अपने को चेन्ज करना है। मददगार और वफादार। जब दोनों बातें होगी तब बापदादा और परिवार के स्नेही और सहयोगी बन सकेंगे। जो सहयोगी होंगे उनकी परख क्या होगी? वह परिवार और बापदादा के विचारों और जो कर्म होते हैं उनमें एक दो के समीप होंगे। एक दो के मत के समीप आते जायेंगे तो फिर मतभेद खत्म हो जायेगा। एक तो मददगार और वफादार उसका तरीका भी बताया, दूसरी बात यह है कि जो भी सम्पूर्ण समर्पण होते हैं उनको अपना तन-मन-धन और समय यह चारों चीज़ें कहाँ लगानी चाहिए? यह तो जरूर है कि प्रवृत्ति मार्ग तरफ भी ध्यान देना है लेकिन यह जो चारों चीज़ें देते हो उसके लिए आप के मन में जजमेंन्ट ठीक है कि हम यथार्थ रीति प्रयोग कर रहे हैं? सम्पूर्ण समर्पण आत्मा को जो सचमुच तन, मन, धन और समय देना चाहिए इस प्रमाण दे रहे हैं? यह पोतामेल भी निकालो कि तन, मन, धन और समय का प्रयोग कहाँ करते हैं? जैसे अपने घर का पोतामेल रखते हो वैसे जो सम्पूर्ण समर्पण हुये हैं उन्हों को यह भी पोतामेल निकालना चाहिए। तन भी कहाँ और कैसे लगाया? यह शार्ट में लिखना है लेकिन स्पष्ट। क्योंकि डिटेल भी होता है परन्तु स्पष्ट नहीं होता। इसलिए शार्ट भी हो और स्पष्ट भी हो। जितना-जितना शार्ट और स्पष्ट लिख सकेंगे उतना आन्तरिक स्थिति भी स्पष्ट और क्लीयर होगी। संकल्प को शार्ट करेंगे तो समाचार भी शार्ट होगा और पुरुषार्थ की लाइन क्लीयर होगी। तो समाचार भी स्पष्ट होगा। इसमें सारा पोतामेल आ जायेगा। तीसरी बात यह याद रखने की है कि मन्सा, वाचा, कर्मणा जो कुछ भी अब तक पुरुषार्थ की कमी के कारण चलता रहा, उसको बुद्धि से बिल्कुल ही भूल जाओ। जैसा कि अब नया जन्म लिया है। पुरुषार्थ में जो बातें कमजोरी की है वह सभी यहाँ ही छोड़कर जानी है। फिर पत्रों में यह नहीं आना चाहिए कि पिछले संस्कारों के कारण यह हो गया। जबकि सम्पूर्ण समर्पण हो गये तो ऐसे ही सोचना कि दान दी हुई चीज़ है, जिसको अगर फिर स्वीकार करेंगे तो उसका परिणाम क्या होगा। यह स्मृति रखने से चारों बातें चेन्ज हो जायेंगी। मुख से कभी ऐसे बोल नहीं निकलनी चाहिए। समस्यायें सामने क्यों आती हैं क्योंकि ज्ञान की कई बातें उल्टे रूप में अन्दर में धारण कर ली हाँ। कोई भूल होगी तो कहेंगे कि सम्पूर्ण तो बने नहीं है। अभी तो समय पडा है। पुरुषार्थी हैं। पुरुषार्थी को भूलें करने की छुट्टी नहीं है। लेकिन आजकल ऐसे समझ बैठे हैं कि पुरुषार्थी अर्थात् भूलें माफ हैं। ये ऐसा करता है तो हमको करना पड़ता है। यह ज्ञानी के बदले अज्ञानी हो गया। याद क्या रखना है, जो करेगा सो पायेगा। मैं जो करूँगा मुझे देख और करेंगे। उनको देख मुझे नहीं करना है। मैं ऐसा करूँ, जो मुझे देख और भी ऐसा करे। तो यह छोटी-छोटी बातें उल्टे रूप में धारण कर ली हैं। ज्ञान का सही एडवान्टेज जो लेना चाहिए उसके बदले उल्टे रूप से प्रयोग करने से पुरुषार्थ में कमजोरी आती है। ये पुरुषार्थहीन की बातें हैं लेकिन समझते है कि यही पुरुषार्थी जीवन है। इसलिए यह तो ज्ञान की पाइन्ट्स अपने पुरुषार्थ की कमी को छिपाने के साधन बनाकर रखे हैं। इन साधनों को मिटाओ। तो सभी समस्यायें आपेही खत्म हो जायेंगी। चार शक्तियों को धारण करना है। है तो एक ही ईश्वरीय शक्ति। लेकिन स्पष्ट करने के लिए कहा जाता है। 1 - समेटने की शक्ति अर्थात् शार्ट करने की शक्ति, 2- समाने की शक्ति, 3- सहन करने की शक्ति, 4- सामना करने की शक्ति, लेकिन किसका सामना करना है? बापदादा व दैवी परिवार का नहीं। माया की शक्ति का सामना करने की शक्ति।

यह चारों शक्तियाँ धारण करेंगे तो सम्पूर्ण समर्पण को अविनाशी कायम रख सकेंगे। जैसे कहते हैं ना कि एक तो शार्ट (छोटा) करो और शार्ट (छाँटना) करो। यह करना है, यह सोचना है, यह नहीं, यह बनना है यह नहीं। शार्ट करते जाओ और जितना हो सके शार्ट करो। जो दस शब्द बोलने हैं, उनको शार्ट कर 2 शब्दों में रहस्य बताओ तो ऐसे शार्ट करते-करते बिल्कुल शार्ट हो जायेगा। ऐसा पुरुषार्थ इस भट्ठी के पक्षात् करना है। एक बात यह भी याद रखना कि जैसे बापदादा ने आप सभी बच्चों को सृष्टि के सामने प्रत्यक्ष किया है तो अब आप बच्चों का भी काम है कि हर कर्तव्य से, हर बात से बापदादा को अनेक आत्माओं के आगे प्रत्यक्ष करना है। वह है आपका कर्तव्य। यह भी अपना चार्ट देखो कि अब तक हमने बाप का सन्देश तो दिया लेकिन उस सन्देश से आत्माओं के अन्दर बापदादा के स्नेह और सम्बन्ध को प्रत्यक्ष किया? नहीं। तो वह सर्विस क्या रही? अधूरी सर्विस नहीं करनी है। अभी सम्पूर्ण समर्पण हुए हो तो सर्विस भी सम्पूर्ण करनी है। इसलिए हरेक को यह भी चेक करना है कि आज मैंने मन्सा, वाचा, कर्मणा कितनी आत्माओं के अन्दर बापदादा के स्नेह और सम्बन्ध को कहाँ तक प्रत्यक्ष किया है? सिर्फ सन्देश देना सर्विस नहीं। सन्देश देना अर्थात् उनको अपने सम्बन्धी बनाना। अपना सम्बन्धी बनाना अर्थात् शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी बनाना। यह है अपना सम्बन्धी बनाना। अपना सम्बन्धी तब बनायेंगे जब उनको स्नेही बनायेंगे। स्नेही बनने से सम्बन्धी बन जायेंगे। सिर्फ सन्देश देना तो चींटी मार्ग की सर्विस है, यह विहंग मार्ग की सर्विस है। दुनिया के अन्दर यह आवाज फैलाओ कि बापदादा अपने कर्तव्य को कैसे गुप्त वेश में कर रहे हैं। उनको इस स्नेह, सम्बन्ध में लाओ। है तो सभी आपके सम्बन्धी ना। तो सम्बन्धियों को अपना सम्बन्ध याद दिलाओ। बिछुडी आत्माओं को स्नेही बनाओ। अभी सर्विस का गुप्त रूप चल रहा है, प्रत्यक्ष रूप नहीं चल रहा है। म्यूजियम में आते हैं बाहर का प्रत्यक्ष रूप और चीज़ है। लेकिन सर्विस का रूप अभी गुप्त है। सर्विस का रूप जब प्रत्यक्ष होगा तब प्रत्यक्षता होगी। सर्विस कैसे वृद्धि को पाये उसके लिए नये-नये प्लैन्स भी बनाओ। आवाज कैसे हो। बेधड़क होकर सूचना देने, सन्देश देने के लिए जाओ। प्रदर्शनी भी करते जाओ लेकिन बाद में उनको जो कहते हो वह तुम भी करो। आपस में मिलकर सोचो। दुनिया को यह कैसे मालूम हो कि अभी समय क्या है और कर्तव्य क्या हो रहा है? किसी भी रीति आवाज पहुँच जाये। पेपर द्वारा सर्विस होनी चाहिए, वह हुई नहीं है। एक संगठन के रूप में, एक दो को समझ, सहयोगी बन बेहद की सर्विस में बेहद का रूप लाना है।

इस ग्रुप में इमर्ज रूप में सभी को यह उमंग है कि जैसे बापदादा चाहते है वैसे ही हम 100 कर के दिखायेंगे। जैसे यह इमर्ज रूप में है, पूरा हो जायेगा। सभी के मन में जो है कि टोटली लौकिक कार्य से सभी सरेन्डर हो जायें वह दिन भी नजदीक है। लेकिन वह तब होगा जब मन से सरेन्डर होंगे। फिर लौकिक कार्य से सरेन्डर होने में देरी नहीं लगेगी। इस बारी मन से सरेन्डर हो जाओ। जिसकी रिज़ल्ट अच्छी देखेंगे उस अनुसार नम्बर देंगे। भट्ठी का प्रोयाम भल हो न हो लेकिन मधुबन तो है ही भट्ठी। मधुबन आते रहेंगे और अपना अमर बनने का सबूत देते रहेंगे। सभी से बड़ा सरेन्डर होना है - संकल्पों में। कोई व्यर्थ संकल्प न आये। इन संकल्पों के कारण ही समय और शक्ति वेस्ट होती है। तो संकल्प से भी सम्पूर्ण समर्पण होना है। मन के उमंगों को अब प्रैक्टिकल में लाना है। 

अच्छा - ओम् शान्ति !!!